कहानियों की भीड़ में आज अचानक एक बहुत ही खूबसूरत कहानी मेरे सामने आई।
"THREE OF US" ये कहानी है शैलजा की जिसे कुछ दिन पहले पता चला कि वो डिमेंशिया की शिकार हो गई है। डिमेंशिया एक ऐसी बीमारी है जिसमें इंसान धीरे-धीरे सब कुछ भूल जाता है। शैलजा के पति का नाम दीपांकर है जो शैलजा का बहुत साथ देता है लेकिन साथ ही अपनी ही जिंदगी में थोड़ा उलझा हुआ भी रहता है।
शैलजा शैलजा को कोंकण के एक गांव में जाने के लिए मना लेती है जहां शैलजा ने अपना बचपन बिताया था।
फिर एक सफर शुरू होता है, ऐसा लगता है कि शैलजा अपने अतीत में जीने की कोशिश कर रही है। प्रदीप कामत उसके अतीत का एक बहुत ही अहम हिस्सा है। प्रदीप कामत शैलजा का बचपन का दोस्त है या यूं कहें कि वो उसका बचपन का प्यार है। शायद वो सब कुछ भूलने से पहले प्रदीप से मिलना चाहती थी, उससे कुछ बातें करना चाहती थी, उन दोनों के बीच रह गई बातों को साफ करना चाहती थी।
ये कहानी देखते हुए लगता है कि ये शैलजा की कहानी है, अचानक लगता है कि ये प्रदीप की कहानी है। शैलजा को देखकर प्रदीप खुश हो जाता है। आने वाले दो दिनों में तीनों अपनी छोटी-छोटी लेकिन कभी न खत्म होने वाली कहानियों की ओर आगे बढ़ते हैं। शैलजा वह सब कुछ देखना चाहती है जो शायद उसे भविष्य में देखने को न मिले। उसे देखकर प्रदीप खुश होता है मानो उसका एकमात्र उद्देश्य शैलजा को एक बार देखना था। दीपंकर अभी भी ऐसे ही था जैसे कोई शरीर जो अपनी मौजूदगी नहीं दिखाना चाहता हो। आखिरी सीन में जब शैलजा और प्रदीप हंसते हुए नजर आते हैं तो ऐसा लगता है मानो उनके दिल से नहीं बल्कि हमारे दिल से कोई बड़ा बोझ उतर गया हो। यह फ़िल्म जरूर देखे.
"THREE OF US" एक अतित की खोज.